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पिछला पृष्ठ (स्वामीजी के कतिपय संदेशविन्दु) | अगला पृष्ठ (०६.मातृभक्ति एवं गुरुभक्ति के पर्यायवाची-स्वस्तिश्री रवीन्द्रकीर्ति स्वामी जी)
- ० १. अयोध्या तीर्थ की आरती
- ० १ - दर्शनविशुद्धि भावना
- ० १ - विनयसम्पन्नता भावना
- ० २ - विनयसम्पन्नता भावना
- ० ३ - शीलव्रतेष्वनतिचार भावना
- ० ४ - अभीक्ष्णज्ञानोपयोग भावना
- ० ५ - संवेग भावना
- ० ६. उन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दी के धुरन्धर आचार्य
- ००१. णमोकार महामंत्र.
- ००१०. संयम मार्गणा
- ००१०. सम्यग्दृष्टी यदि जिनशास्त्र का एक पद है
- ००११. किन-किन आचार्यों के ग्रंथ प्रमाणीक हैं
- ००१२. कषायप्राभृत ग्रंथ परम्परागत भगवान की दिव्यध्वनि से प्राप्त है
- ००१३. तत्त्वार्थसूत्र ग्रंथ आप्त-भगवान की वाणी से प्राप्त प्रमाणीक है
- ००१४. श्री कुन्दकुन्ददेव-विदेह क्षेत्र में जाकर सीमंधर स्वामी का दर्शन किया है
- ००१५. युग की आदि में इंद्र ने अयोध्या में सर्वप्रथम पाँच जिनमंदिर बनाये
- ००१६. वैलाशपर्वत पर भरतचक्री द्वारा बनवाये गये मंदिर
- ००१७.कैलाशपर्वत पर भरत चक्रवर्ती ने जिनमंदिर बनवाये थे
- ००१८.सुलोचना ने जिनमंदिर व जिनप्रतिमाएँ बनवार्इं
- ००१९.हरिषेण चक्रवर्ती ने अगणित जिनमंदिर बनवाये
- ००२. चत्तारि मंगल पाठ अनादि निधन है।
- ००२०. श्री रामचन्द्रजी ने कुंथलगिरि पर अनेक जिनमंदिर बनवाये
- ००२१.धाराशिव नगर में १००८ खम्भों का जिनमंदिर
- ००२२. लंका में रावण के महल में विशाल स्वर्णमयी १००० खंभों का शांतिनाथ मंदिर था
- ००२३.श्रीरामचन्द्र जी ने लंका में स्वर्णमयी हजार खंभों वाले
- ००२४.आकाश में विजय देव के नगर में जिनमंदिर हैं।
- ००२५.श्रावकों की त्रेपन क्रियायें श्रीकुन्दकुन्ददेव ने र्विणत की है।
- ००२६.बावड़ी के जल में सात भव दिख जाते हैं
- ००२७.एक चैत्यवृक्ष के चार मानस्तंभ हैं।
- ००२८. केवलज्ञान वृक्ष ही अशोक वृक्ष है।
- ००२९. २४ तीर्थंकरों के समय में २४ कामदेव
- ००३.णमोकार महामंत्र अनादि है, इसके अनेक प्रमाण हैं।
- ००३०.२४ कामदेव के नाम
- ००४. ॐ मंत्र में पंचपरमेष्ठी समाविष्ट हैं
- ००५. पंचवर्णी ह्रीं में चौबीस तीर्थंकर विराजमान हैं
- ००६ .अर्हं मंत्र की महिमा
- ००७. अर्हं मंत्र में पंचपरमेष्ठी विराजमान हैं
- ००८. जिन’ जिनेन्द्रदेव का लक्षण करते हुये श्रीपूज्यपाद स्वामी स्तुति करते हैं।
- ००९. सम्यक्त्व का लक्षण
- ०१-गतिमार्गणाधिकार
- ०१. अष्टम भव पूर्व-"राजा वज्रजंघ"
- ०१. आचार्य उपाध्याय साधु
- ०१. आचार्य श्री कुन्दकुन्द स्वामी
- ०१. आत्मा से इच्छाओं का दमन तक
- ०१. क्षमावाणी मात्र से नहीं, प्राणी मात्र से
- ०१. गतिमार्गणा के अन्तर्गत चारों गतियों में अल्पबहुत्व का वर्णन
- ०१. गतिमार्गणा के अन्तर्गत नरक गति में नारकी जीवों का काल निरूपण
- ०१. जनवरी २०१४
- ०१. जीवाधिकार
- ०१. णमोकार महामंत्र.
- ०१. तृतीय महाधिकार-मंगलाचरण एवं चौदह गुणस्थानों में क्षेत्रानुगम व्यवस्था
- ०१. दर्शन स्तुति
- ०१. दशम भव पूर्व-"महाबल"
- ०१. दशम भव पूर्व-"विद्याधर-स्वामी महाबल"
- ०१. द्वितीय महाधिकार-गतिमार्गणा
- ०१. द्वितीय महाधिकार-गतिमार्गणा में नरकगति के जीवों की स्पर्शनप्ररूपणा
- ०१. नांदीमंगल विधि
- ०१. निशिया फोटो
- ०१. परिभाषा
- ०१. पहला द्वार
- ०१. पुस्तक-२ का मंगलाचरण एवं प्रारम्भिक भूमिका
- ०१. पूर्व दशम भव-महाबल
- ०१. प्रथम महाधिकार-मंगलाचरण से सयोगि जिनों की संख्या तक विषयवस्तु
- ०१. प्ररूपणा एवं गुणस्थान
- ०१. भक्तामर रचना की प्रस्तावना पर आधारित ४२ प्रश्नोत्तर
- ०१. भक्तामर स्तोत्र एवं उनके चित्र १ से ६
- ०१. भगवान ऋषभदेव वंदना
- ०१. भूमिका
- ०१. मंगल आशीर्वाद
- ०१. मंगलाचरण से लेकर सयोगिकेवली भगवन्तों तक की स्पर्शनप्ररूपणा
- ०१. मङ्गलाचरण
- ०१. मरुभूति - प्रथम भव
- ०१. मूलगुणाधिकार
- ०१. श्रीगौतमस्वामी उवाच - कृतिकर्म प्रयोगविधि
- ०१. અધ્યાય -१
- ०१. અધ્યાય 1
- ०१.गति मार्गणा अधिकार
- ०१.गतिमार्गणा अधिकार
- ०१.गतिमार्गणाधिकार
- ०१.प्रथम चातुर्मास (सन् १९५६, जयपुर खानिया-राजस्थान)
- ०१.युवा गौरव सम्मान समारोह में सम्मानित युवा प्रतिभाएँ
- ०१.शांतिनाथ भगवान निशिया फोटो-हस्तिनापुर
- ०१.षट्खण्डागम- प्रथम ग्रन्थ टीका की प्रशस्ति
- ०१ - तत्वार्थसूत्र- प्रथम अध्याय के प्रश्न- उत्तर
- ०१ - तत्वार्थसूत्र - प्रथम अध्याय के प्रश्न- उत्तर
- ०१ - प्रथम अध्याय
- ०१ . परिभाषा
- ०१ . पर्यावरण ः जैनदर्शन एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण
- ०१ . राजसभा में मंत्री गणों द्वारा नगरी की शोभा का वर्णन
- ०१ .द्वादशानुप्रेक्षा
- ०१ अयोध्या तीर्थ
- ०१ पंचमकाल में गौतम स्वामी आदि
- ०१ पहली ढाल
- ०१०. संयम मार्गणा में आलाप वर्णन ( चार्ट सहित )
- ०१०. सम्यग्दृष्टी यदि जिनशास्त्र का एक पद है
- ०१० - दशमी अध्याय
- ०१००.सभी समुद्रों के जल का स्वाद अपने नाम के अनुरूप है।
- ०११. किन-किन आचार्यों के ग्रंथ प्रमाणीक हैं
- ०१२. कषायप्राभृत ग्रंथ परम्परागत भगवान की दिव्यध्वनि से प्राप्त है
- ०१३. तत्त्वार्थसूत्र ग्रंथ आप्त-भगवान की वाणी से प्राप्त प्रमाणीक है
- ०१४. श्री कुन्दकुन्ददेव-विदेह क्षेत्र में जाकर सीमंधर स्वामी का दर्शन किया है
- ०१५. युग की आदि में इंद्र ने अयोध्या में सर्वप्रथम पाँच जिनमंदिर बनाये
- ०१६. वैलाशपर्वत पर भरतचक्री द्वारा बनवाये गये मंदिर
- ०१७.कैलाशपर्वत पर भरत चक्रवर्ती ने जिनमंदिर बनवाये थे
- ०१८.सुलोचना ने जिनमंदिर व जिनप्रतिमाएँ बनवार्इं
- ०१९.हरिषेण चक्रवर्ती ने अगणित जिनमंदिर बनवाये
- ०२-इन्द्रियमार्गणाधिकार
- ०२. अंकुरार्पण विधि
- ०२. आचार्य श्री मेरुभूषण जी महाराज
- ०२. इन्द्रियमार्गणा में अल्पबहुत्व
- ०२. गुणस्थानों में आलाप कथन (चार्ट सहित)
- ०२. गुर्वावली
- ०२. चतुर्थ महाधिकार-गति मार्गणाधिकार
- ०२. चत्तारि मंगल पाठ अनादि निधन है।
- ०२. चौदह गुणस्थानों में आलाप कथन (चार्ट सहित)
- ०२. जिनवाणी भक्ति
- ०२. जीवसमास प्रकरण
- ०२. तिर्यंचगति में तिर्यंच जीवों का कालनिरूपण
- ०२. दूसरा द्वार
- ०२. द्वितीय महाधिकार-इन्द्रियमार्गणा
- ०२. द्वितीय महाधिकार-गतिमार्गणा में नरकगति का वर्णन
- ०२. द्वितीय महाधिकार-गतिमार्गणा में नरकगति के जीवों की स्पर्शनप्ररूपणा
- ०२. नवम भव पूर्व-"ललितांग"
- ०२. नवम भव पूर्व-"ललितांग देव"
- ०२. निशिया फोटो
- ०२. भक्तामर स्तोत्र एवं उनके चित्र ७ से १२
- ०२. मंगल आशीर्वाद
- ०२. मूलगुण-उत्तरगुण
- ०२. लघु कृतिकर्म विधि (कायोत्सर्ग विधि)
- ०२. वज्रघोष हाथी - दूसरा भव
- ०२. वृहत्प्रत्याख्यानसंस्तरस्तवाधिकार-
- ०२. श्री गौतमस्वामी का परिचय
- ०२. षट्खण्डागम- द्वितीय टीका ग्रन्थ की प्रशस्ति
- ०२. सर्वोच्च विजय से आत्मालोचन तक
- ०२. અધ્યાય - 2
- ०२. અધ્યાય - २
- ०२.इन्द्रिय मार्गणा अधिकार
- ०२.इन्द्रियमार्गणा अधिकार
- ०२.इन्द्रियमार्गणाधिकार
- ०२.कुंथुनाथ -अरहनाथ निशिया फोटो-हस्तिनापुर
- ०२.दूसरा चातुर्मास (सन् १९५७, जयपुर खानिया-राजस्थान)
- ०२.फरवरी २०१४
- ०२.भगवान अजितनाथ वंदना
- ०२.सम्मानित प्रतिभाओं का परिचय
- ०२ - तत्वार्थसूत्र- द्वितीय अध्याय के प्रश्न-उत्तर
- ०२ - द्वितीय अध्याय
- ०२ .कन्या सुरसुन्दरी का शैवगुरु के पास विद्याध्ययन
- ०२ श्रावस्ती तीर्थ
- ०२०. श्री रामचन्द्रजी ने कुंथलगिरि पर अनेक जिनमंदिर बनवाये
- ०२१.धाराशिव नगर में १००८ खम्भों का जिनमंदिर
- ०२२. लंका में रावण के महल में विशाल स्वर्णमयी १००० खंभों का शांतिनाथ मंदिर था
- ०२३.श्रीरामचन्द्र जी ने लंका में स्वर्णमयी हजार खंभों वाले
- ०२४.आकाश में विजय देव के नगर में जिनमंदिर हैं।
- ०२५.श्रावकों की त्रेपन क्रियायें श्रीकुन्दकुन्ददेव ने र्विणत की है।
- ०२५.श्रावकों की त्रेपन क्रियायें श्रीकुन्दकुन्ददेव ने वर्णित की है।
- ०२६.बावड़ी के जल में सात भव दिख जाते हैं
- ०२७.एक चैत्यवृक्ष के चार मानस्तंभ हैं।
- ०२८. केवलज्ञान वृक्ष ही अशोक वृक्ष है।
- ०२९. २४ तीर्थंकरों के समय में २४ कामदेव
- ०३-कायमार्गणाधिकार
- ०३. अष्टम भव पूर्व-"राजा वज्रजंघ"
- ०३. इन्द्रिय मार्गणाधिकार
- ०३. कविवर श्री दौलतरामजी
- ०३. कायमार्गणा में अल्पबहुत्व
- ०३. कुन्दकुन्द आदि आचार्य
- ०३. कृतिकर्म विधि के विषय में वर्णन
- ०३. गणधरदेव ही द्वादशांग श्रुत के कर्ता होते हैं
- ०३. गतिमार्गणा में आलाप वर्णन ( चार्ट सहित )
- ०३. चम्पापुर के राजा अरिदमन के पुत्र श्रीपाल को अकस्मात कुष्ठरोग
- ०३. ज्ञान से लेकर आचरण का महत्त्व तक
- ०३. तीसरा द्वार
- ०३. द्वितीय महाधिकार-इन्द्रियमार्गणा
- ०३. द्वितीय महाधिकार-कायमार्गणा
- ०३. द्वितीय महाधिकार-गतिमार्गणा में तिर्यंचगति का वर्णन
- ०३. ध्यान
- ०३. नंदीश्वर भक्ति
- ०३. निशिया फोटो
- ०३. पर्याप्ति प्रकरण
- ०३. भक्तामर स्तोत्र एवं उनके चित्र १३ से १९
- ०३. मंगल आशीर्वाद
- ०३. मनुष्य गति में मनुष्यों का कालनिरूपण
- ०३. युवा गौरव सम्मान समारोह हेतु चयनित अन्य युवा प्रतिभाएँ
- ०३. शशिप्रभ देव - तीसरा भव
- ०३. शांति हवन विधि
- ०३. षट्खण्डागम-तृतीय टीका ग्रन्थ की प्रशस्ति
- ०३. संक्षेप प्रत्याख्यान अधिकार-
- ०३. અધ્યાય - 3
- ०३. અધ્યાય - ३
- ०३.काय मार्गणा अधिकार
- ०३.कायमार्गणा अधिकार
- ०३.कायमार्गणाधिकार
- ०३.णमोकार महामंत्र अनादि है, इसके अनेक प्रमाण हैं।
- ०३.तीसरा चातुर्मास (सन् १९५८, ब्यावर-राजस्थान)
- ०३.भगवान संभवनाथ वंदना
- ०३.मल्लिनाथ भगवान की निशिया फोटो-हस्तिनापुर
- ०३.मार्च २०१४
- ०३ - तत्वार्थसूत्र- तृतीय अध्याय के प्रश्न-उत्तर
- ०३ - तृतीय अध्याय
- ०३ कौशाम्बी तीर्थ
- ०३ तीसरी
- ०३०.२४ कामदेव के नाम
- ०३१.तीर्थंकर, चक्रवर्ती आदि नियम से सिद्ध होते हैं।
- ०३२. हुंडावसर्पिणी के दोष से होने वाले कार्य
- ०३३.अकृत्रिम जिनमंदिर के बावड़ी में जिनमंदिर
- ०३४. पाण्डुकवन में मानस्तम्भों का वर्णन
- ०३५.भागीरथ महामुनि के पाद प्रक्षाल के क्षीरोदधि के जल से गंगानदी भागीरथी कहलाई है
- ०३६.मंदिरों पर श्वेत पताकायें थी
- ०३७.जब धर्म का ह्रास होने लगता है तब तीर्थंकर भगवान जन्म लेते हैं।
- ०३८.दशरथ के पिता राजा अनरण्य ने अपने छोटे पुत्र अनन्तरथ के साथ दीक्षा ली थी
- ०३९. विवध्र्दन कुमार आदि चक्रवर्ती भरत के ९२३ पुत्र थें।
- ०४- तत्वार्थसूत्र-चतुर्थ अध्याय के प्रश्न-उत्तर
- ०४-योगमार्गणाधिकार
- ०४. अग्निवेग विद्याधर - चौथा भव
- ०४. इन्द्रिय मार्गणा में आलाप वर्णन ( चार्ट सहित )
- ०४. कवि श्री धनपालजी
- ०४. काय मार्गणाधिकार
- ०४. गतिमार्गणा में मनुष्यगति का वर्णन
- ०४. चौथा द्वार
- ०४. णमोकार मंत्र एवं चत्तारि मंगल पाठ
- ०४. देवगति में देवों का कालनिरूपण
- ०४. द्वादशांग जिनवाणी को ग्रन्थरूप में नहीं लिखा जा सकता
- ०४. द्वितीय महाधिकार-कायमार्गणा
- ०४. द्वितीय महाधिकार-गतिमार्गणा में मनुष्यगति का वर्णन
- ०४. द्वितीय महाधिकार-योगमार्गणा
- ०४. नाना मत-मतान्तर
- ०४. निशिया फोटो
- ०४. प्राण प्ररूपणा
- ०४. भक्तामर स्तोत्र एवं उनके चित्र २० से २५
- ०४. भगवान अभिनन्दननाथ वंदना
- ०४. मंगल आशीर्वाद
- ०४. योगमार्गणा में अल्पबहुत्व
- ०४. वेदिका निर्माण विधि
- ०४. षट्खण्डागम - चतुर्थ ग्रन्थ टीका की प्रशस्ति
- ०४. सप्तम भव पूर्व-"भोगभूमिज आर्य"
- ०४. समाचार अधिकार
- ०४. समाधी भक्ति
- ०४. सल्लेखना
- ०४. हस्तिनापुर के प्राचीन मंदिर सम्बंधित फोटो
- ०४. ॐ मंत्र में पंचपरमेष्ठी समाविष्ट हैं
- ०४. અધ્યાય - 4
- ०४. અધ્યાય - ४
- ०४.अप्रैल २०१४
- ०४.चौथा चातुर्मास (सन् १९५९, अजमेर-राजस्थान)
- ०४.भगवान अभिनन्दननाथ वंदना
- ०४.योग मार्गणा अधिकार
- ०४.योगमार्गणा अधिकार
- ०४.योगमार्गणाधिकार
- ०४.श्रद्धा से लेकर धर्म तक
- ०४ - चतुर्थ अध्याय
- ०४ - तत्वार्थसूत्र- चतुर्थ अध्याय के प्रश्न-उत्तर
- ०४ - तत्वार्थसूत्र-चतुर्थ अध्याय के प्रश्न-उत्तर
- ०४ - तत्वार्थसूत्र - चतुर्थ अध्याय के प्रश्न-उत्तर
- ०४ . कुष्ठी श्रीपाल के साथ मैनासुन्दरी का विवाह
- ०४ अक्टूबर १९७४
- ०४ तत्वार्थसूत्र-चतुर्थ अध्याय के प्रश्न-उत्तर
- ०४ वाराणसी तीर्थ
- ०४०. भरत चक्रवती द्वारा बनवाए गए जिनमंदिरों का राजा दशरथ ने जीर्णोद्धार कराया है।
- ०४१.चक्रवर्ती हरिषेण ने पर्वतों पर जो मंदिर बनवाये थे, उनमें श्वेत पताकायें लहरा रही थीं।
- ०४२.भगवान महावीर का जन्म कुण्डलपुर में रात्रि में हुआ
- ०४३.भगवान महावीर ने देवकृत दिव्य भोगों का अनुभव किया
- ०४४.भगवान महावीर विपुलाचल पर्वत पर पहुँचे
- ०४५.भगवान महावीर की दिव्यध्वनि श्रावण कृष्णा एकम् को खिरी
- ०४६.इन्द्र ने सर्वप्रथम भगवान का ऋषभदेव नाम रखा
- ०४७.२४ तीर्थंकरों के प्रथम पारणा के नगर
- ०४८.२४ तीर्थंकरों के प्रथम आहार दाता के नाम
- ०४९.भगवान महावीर का प्रथम आहार स्थान
- ०५- तत्वार्थसूत्र-पंचम अध्याय के प्रश्न-उत्तर
- ०५-वेदमार्गणाधिकार
- ०५. इन्द्रियमार्गणा में एकेंद्रिय से पंचेंद्रिय तक जीवों का कालनिरूपण
- ०५. काय मार्गणा में आलाप वर्णन ( चार्ट सहित )
- ०५. गुणस्थान
- ०५. द्वितीय महाधिकार- गतिमार्गणा में देवगति का वर्णन
- ०५. द्वितीय महाधिकार-योगमार्गणा
- ०५. द्वितीय महाधिकार-वेदमार्गणा
- ०५. ध्वजारोहण विधि
- ०५. पं. श्री सुमेरुचंदजी
- ०५. पंचम द्वार
- ०५. पंचवर्णी ह्रीं में चौबीस तीर्थंकर विराजमान हैं
- ०५. भ.महावीर स्वामी के बाद 683 वर्ष तक ही द्वादशांग रहे हैं
- ०५. भक्तामर स्तोत्र एवं उनके चित्र २६ से ३१
- ०५. मंगल आशीर्वाद
- ०५. योग मार्गणाधिकार
- ०५. लघु सिद्धभक्ति
- ०५. वर्तमान में निर्दोष मुनि
- ०५. वेदमार्गणा में अल्पबहुत्व
- ०५. षट्खण्डागम - पंचम ग्रन्थ टीका की प्रशस्ति
- ०५. षष्टम भव पूर्व-"श्रीधर देव"
- ०५. અધ્યાય - 5
- ०५. અધ્યાય - ५
- ०५.धर्म के दश लक्षण से लेकर अभय—दान तक
- ०५.पंचाचार अधिकार'
- ०५.पाँचवॉँ चातुर्मास (सन् १९६०, सुजानगढ़-राजस्थान)
- ०५.भगवान सुमतिनाथ वंदना
- ०५.मई २०१४
- ०५.वेद मार्गणा अधिकार
- ०५.वेदमार्गणा अधिकार
- ०५.वेदमार्गणाधिकार
- ०५.संज्ञा,
- ०५ - तत्वार्थसूत्र - पंचम अध्याय के प्रश्न-उत्तर
- ०५ - पंचम अध्याय
- ०५ . कुष्ठी श्रीपाल के साथ मैनासुन्दरी का विवाह
- ०५ .अच्युत स्वर्ग में विद्युतप्रभ देव - पाँचवां भव
- ०५ चन्द्रपुरी तीर्थ
- ०५०.दान का फल
- ०५१.तीर्थंकरों के आहार के समय रत्नवृष्टि
- ०५२.समस्त तीर्थंकरों को केवलज्ञान की प्राप्ति कितने उपवास के बाद हुई
- ०५३.कौन से तीर्थंकर किस आसन से मोक्ष गए
- ०५४.२४ तीर्थंकरों के केवलज्ञान उत्पत्ति के स्थान
- ०५५.भीम महामुनि ने भाले के अग्रभाग से दिये जाने रूप वृत्तपरिसंख्यान नियम लिया
- ०५६.तीर्थंकरों के चैत्यवृक्ष की ऊँचाई का प्रमाण
- ०५७.संक्रांति में जैनेश्वरी दीक्षा का मुहूर्त नहीं है
- ०५८.पुण्य की महिमा का वर्णन
- ०५९.पुण्य के ४ भेद हैं
- ०६-कषायमार्गणाधिकार
- ०६. इन्द्रिय मार्गणाधिकार
- ०६. कषायमार्गणा में अल्पबहुत्व
- ०६. कायमार्गणा में षट्काय के जीवों का कालनिरूपण
- ०६. कृतिकर्म विधि के प्रमाण
- ०६. घटयात्रा विधि
- ०६. चक्रवर्ती वज्रनाभि (छठा भव)
- ०६. छठा द्वार
- ०६. छठे ग्रन्थ टीका की प्रशस्ति
- ०६. तीर्थंकर मुनि
- ०६. दीवान श्री जोधराजजी
- ०६. द्वितीय महाधिकार- इन्द्रिय मार्गणाधिकार
- ०६. द्वितीय महाधिकार-कषायमार्गणा
- ०६. द्वितीय महाधिकार-वेदमार्गणा
- ०६. पंचम भव पूर्व-"राजा सुविधिकुमार"
- ०६. पिण्ड शुद्धी अधिकार---
- ०६. भक्तामर स्तोत्र एवं उनके चित्र ३२ से ३७
- ०६. योग मार्गणा में आलाप वर्णन ( चार्ट सहित )
- ०६. वेद मार्गणाधिकार
- ०६. शक्तितस्त्याग भावना
- ०६. श्री गौतम स्वामी प्रणीत कृतियों का परिचय एवं प्रतिक्रमण पाठ के प्रमाण
- ०६. षट्खण्डागम - छठे ग्रन्थ टीका की प्रशस्ति
- ०६. स्वाध्याय से लेकर शास्त्रों का सार तक
- ०६. અધ્યાય - 6
- ०६. અધ્યાય - ६
- ०६.उन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दी के धुरन्धर आचार्य
- ०६.कषाय मार्गणा अधिकार
- ०६.कषायमार्गणा अधिकार
- ०६.कषायमार्गणाधिकार
- ०६.छठा चातुर्मास (सन् १९६१, सीकर-राजस्थान)
- ०६.जून २०१४
- ०६.भगवान पद्मप्रभ वंदना