11. उपशांतमोह गुणस्थान
११. उपशांतमोह गुणस्थान
इस गुणस्थान में मोहनीय कर्म की सम्पूर्ण प्रकृतियों का उपशम हो जाने से परिणाम पूर्णतया निर्मल हो जाते हैं और यथाख्यात चारित्र प्रगट हो जाता है अतएव यहाँ उपशांत वीतरागछद्मस्थ कहलाते हैं।