11. द्वादशानुप्रेक्षा
द्वादशानुप्रेक्षा
श्री कुन्दकुन्ददेव ने ‘द्वादशानुप्रेक्षा’ नाम से स्वतन्त्र ग्रंथ लिखा, उसमें ९१ गाथायें हैं। इन्हीं आचार्य द्वारा विरचित मूलाचार में भी यही क्रम रखा है। इसमें द्वादशानुप्रेक्षा नाम से एक अधिकार लिया है इन ग्रन्थों में इसी क्रम से वर्णन है एवं टीकाकारों ने भी यही क्रम लिया है उनका क्रम देखिए—
आसवसंवरणिज्जर धम्मं बोहिं च चिंतेज्जो।।२।।[१]
अध्रुव, अशरण, एकत्व, अन्यत्व, संसार, लोक, अशुचित्व, आस्रव, संवर, निर्जरा, धर्म और बोधि इन बारह अनुप्रेक्षाओं का चिन्तन करना चाहिये।।२।।
आसवसंवरणिज्जर धम्मं बोधिं च िंचतिज्जो[२]।।४०३।।
गाथार्थ — अध्रुव, अशरण, एकत्व, अन्यत्व, संसार, लोक, अशुचि, आस्रव, संवर, निर्जरा, धर्म, और बोधि इनका चिन्तवन करना चाहिए।।४०३।।
आसवसंवरणिज्जरधम्मं बोधिं च िंचतेज्जो।।६९४।।[३]
गाथार्थ — अध्रुव, अशरण, एकत्व, अन्यत्च, संसार, लोक, अशुभत्व, आस्रव, संवर, निर्जरा, धर्म, और बोधि इनका चिन्तवन करें।।६९४।। ज्ञानार्णव पुस्तक में बारह भावनाओं के क्रम में अन्तर है—
- अनित्य
- अशरण
- संसार
- एकत्व
- अन्यत्व
- अशुचि
- आस्रव
- संवर
- निर्जरा
- धर्म
- लोकभावना
- बोधिदुर्लभ भावना ।[४]
अर्थ — अनित्य, अशरण, संसार,, एकत्व, अन्यत्व, अशुचि, आस्रव, संवर, निर्जरा, लोक, बोधिदुर्लभ और धर्म, इनके स्वरूप का चिन्तवन करना सो ये बारह भावनाएँ (अनुप्रेक्षाएँ) हैं।
वर्तमान में तत्त्वार्थसूत्र के अनुसार ही १२ भावनाओं के क्रम प्रसिद्ध हैं। द्वादशानुप्रेक्षा के क्रम में अन्तर
क्रम संख्या | श्री कुंदकुददेव कृत | श्री शुभचन्द्राचार्य कृत | श्री उमास्वामी कृत |
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मूलाचार एवं द्वादशानुप्रेक्षा में | ज्ञानार्णव में | तत्त्वार्थसूत्र में | |
1 | अध्रुव | अनित्य | अनित्य |
2 | अशरण | अशरण | अशरण |
3 | एकत्व | संसार | संसार |
4 | अन्यत्व | एकत्व | एकत्व |
5 | संसार | अन्यत्व | अन्यत्व |
6 | लोक | अशुचि | अशुचि |
7 | अशुचित्व | आस्रव | आस्रव |
8 | आस्रव | संवर | संवर |
9 | संवर | निर्जरा | निर्जरा |
10 | निर्जरा | धर्म | लोक |
11 | धर्म | लोक | बोधिदुर्लभ |
12 | बोधि | बोधिदुर्लभ | धर्म |