12.सिद्धपरमेष्ठी का स्तवन प्रश्नोत्तरी
सिद्धपरमेष्ठी का स्तवन
प्रश्न २६०—सिद्ध परमेष्ठी का स्वरूप कैसा है ?
उत्तर—सिद्ध परमेष्ठी आठ कर्मों से रहित व आठ गुणों से सहित होते हैं, यह असंख्यात प्रदेशी लोक भी उनके ज्ञान में एक नक्षत्र के समान झलकता है, सिद्ध परमेष्ठी अत्यन्त सूक्ष्म हैं जिनको परमाणु पर्यंत पदार्थों को प्रत्यक्ष करने वाला अवधिज्ञानी भी नहीं देख सकता है।
प्रश्न २६१—सिद्ध परमेष्ठी कहाँ विराजमान रहते हैं ?
उत्तर—सिद्ध परमेष्ठी लोक के अग्रभाग पर विराजमान रहते हैं।
प्रश्न २६२—सिद्ध परमेष्ठी कितने दोषों से रहित होते हैं ?
उत्तर—सिद्ध परमेष्ठी जन्म, जरा, मरण आदि अठारह दोषों से रहित होते हैं।
प्रश्न २६३—सिद्ध परमेष्ठी कितने कर्मों से रहित होते हैं ?
उत्तर—सिद्ध परमेष्ठी अष्ट कर्मों से रहित होते हैं।
प्रश्न २६४—वे आठ कर्म कौन—२ से हैं ?
उत्तर—वे आठ कर्म हैं—ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र और अन्तराय।
प्रश्न २६५—आठ कर्मों के नाश से कौन—कौन से आठ गुण प्रकट होते हैं ?
उत्तर—सिद्धों के ज्ञानावरण के नाश से अनन्त ज्ञान, दर्शनावरण के नाश से अनन्त दर्शन, मोहनीय के सर्वथा क्षय हो जाने से अनन्त सुख, वीर्यान्तराय कर्म के नाश हो जाने से अनन्तवीर्य, नामकर्म के अभाव से अमूर्तिक, आयु कर्म के नाश से जन्म—मरण रहित होना, गोत्र कर्म का नाश होने से गोत्र रहित होना, वेदनीय कर्म के नाश हो जाने से इन्द्रियजन्य सुख—दुख भी नहीं है।
प्रश्न २६६—सिद्ध भगवान ज्ञानी और सुखी किस प्रकार हैं ?
उत्तर—सिद्धों के समस्त ज्ञानावरणादि कर्मों का नाश हो गया है इसलिए वे सर्व जीवों से अधिक ज्ञानी हैं और समस्त बन्धनों से रहित होने के कारण वे अनन्त सुख के भण्डार हैं।
प्रश्न २६७—तत्त्वज्ञानी पुरुष की दृष्टि किस प्रकार अविनाशी मोक्षपद की प्राप्ति कराती है ?
उत्तर—जिस प्रकार सोने से बना हुआ पात्र सुवर्ण स्वरूप ही होता है तथा लोहे से बना हुआ पात्र लोहस्वरूप ही होता है उसी प्रकार शुद्ध आत्मस्वरूप में निश्चल रीति से ठहरी हुई तत्त्वज्ञानी पुरुष की दृष्टि निर्मल देदीप्यमान अविनाशी मोक्षपद को प्राप्त कराती है।
प्रश्न २६८—शास्त्र किस प्रयोजन के लिए होते हैं ?