13.आलोचनाधिकार प्रश्नोत्तरी
आलोचनाधिकार
प्रश्न २६९—तीनों लोकों का स्वामी कौन है ?
उत्तर—जिन्होंने अष्ट कर्मों को जीत लिया है ऐसे जिनेन्द्र भगवान तीनों लोकों के स्वामी हैं।
प्रश्न २७०—भगवान के सामने अपने दोषों का आलोचन क्यों किया जाता है ?
उत्तर—भगवान के सामने अपने दोषों का आलोचन भगवान को सुनाने के लिए नहीं किन्तु आत्मशुद्धि के लिए किया जाता है।
प्रश्न २७१—शल्य कितने प्रकार की होती है ?
उत्तर—शल्य तीन प्रकार की होती है—(१) माया, (२) मिथ्या, (३) निदान।
प्रश्न २७२—संसारी जीवों द्वारा किए गए दूषणों की शुद्धि कहाँ सम्भव है ?
उत्तर—यद्यपि संसारी जीवों द्वारा किए गए दूषणों की शुद्धि प्रायश्चित्त के करने से भी होती है किन्तु जितने दूषण हैं उतने प्रायश्चित्त शास्त्र में भी नहीं हैं इसलिए समस्त दूषणों की शुद्धि जिनेन्द्र भगवान के समीप होती है।
प्रश्न २७३—समस्त कर्मों में बलवान कौन है ?
उत्तर—ज्ञानावरण आदि समस्त कर्मों के मध्य में मोह ही अत्यन्त बलवान कर्म है, इसी मोह के प्रभाव से यह मन जहाँ—तहाँ चंचल होकर भ्रमण करता है और मरण से डरता है।
प्रश्न २७४—उपयोग के कितने भेद हैं ?
उत्तर—उपयोग के तीन भेद हैं—(१) अशुभोपयोग, (२) शुभोपयोग, (३) शुद्धोपयोग।
प्रश्न २७५—अशुभोपयोग से क्या सम्भव है ?
उत्तर—जीवों का उपयोग अशुभ होने से पाप बन्ध होता है और पाप बन्ध के होने से उनको नाना प्रकार की खोटी—खोटी गतियों में भ्रमण करना पड़ेगा।
प्रश्न २७६—शुभोपयोग से क्या होता है ?
उत्तर—शुभ उपयोग की कृपा से प्राणी को राजा—महाराजा आदि पदों की प्राप्ति होती है परन्तु वह भी संसार का बढ़ाने वाला है।
प्रश्न २७७—शुद्धोपयोग से किसकी प्राप्ति होती है ?
उत्तर—शुद्धोपयोग से संसार की प्राप्ति नहीं हो सकती अपितु निर्वाण की ही प्राप्ति होती है।
प्रश्न २७८—शरीर और आत्मा में से र्मूितक कौन है और अमूर्तिक कौन ?
उत्तर—शरीर और आत्मा में से आत्मा अर्मूितक है और शरीर मूर्तिक।
प्रश्न २७९—धर्म द्रव्य का कार्य क्या है ?
उत्तर—धर्म द्रव्य गमन करने में सहकारी है।
प्रश्न २८०—अधर्म द्रव्य क्या करता है ?
उत्तर—अधर्म द्रव्य ठहरने में सहकारी है।
प्रश्न २८१—आकाश द्रव्य क्या करता है ?
उत्तर—आकाश द्रव्य अवकाश देने में सहकारी है।
प्रश्न २८२—कालद्रव्य क्या कार्य करता है ?
उत्तर—कालद्रव्य परिवर्तन करने में सहकारी है।
प्रश्न २८३—पुद्गल द्रव्य का कार्य क्या है ?
उत्तर—पुद्गल द्रव्य नोकर्म तथा कर्म स्वरूप में परिणत होकर आत्मा के साथ बंध को प्राप्त होता है तथा उसकी कृपा से नाना प्रकार की गतियों में भ्रमण करना पड़ता है और सत्य मार्ग भी नहीं सूझता है।
प्रश्न २८४—विकल्प ध्यान कैसा है और र्नििवकल्पध्यान कैसा है ?
उत्तर—विकल्परूप ध्यान वास्तविक रीति से संसार स्वरूप है तथा र्नििवकल्पक ध्यान मोक्षस्वरूप है।
प्रश्न २८५—संसार में कौन सी ऐसी पदवी है जो अभूतपूर्व है ?
उत्तर—संसार में अभूतपूर्व पदवी मोक्षसुख है।