18. गृहस्थ के ६ आर्यकर्म
गृहस्थ के ६ आर्यकर्म
आदिपुराण भाग २ में श्रावकों के ६ आर्यकर्म का वर्णन है—
श्रुतोपासकसूत्रत्वात् स तेभ्यः समुपादिशत्।।२४।।
अर्थ — भरत ने उन्हें अर्थात् व्रती श्रावकों को उपासकाध्ययनांग से इज्या, वार्ता, दत्ति, स्वाध्याय, संयम और तप का उपदेश दिया। अन्यत्र ग्रन्थों में श्रावकों की षट्क्रियायें मानी हैं—
- देवपूजा
- गुरूपास्ति
- स्वाध्याय
- संयम
- तप
- दान ।
पद्मनन्दिपञ्चविंशतिका ग्रन्थ में श्रावकाचार अधिकार में श्रावकों के षट् आवश्यक कर्म बताए हैं—
दानञ्चेति गृहस्थाणां षट् कर्माणि दिने दिने२।।७।।