23. राम—लक्ष्मण के प्रेम की परीक्षा
राम—लक्ष्मण के प्रेम की परीक्षा
इक दिन सुरपुर में इन्द्रों ने, दोनों की बहुत बड़ाई की।
ना भ्रातप्रेम इनसा जग में, कह—कहकर बहुत दुहाई दी।।
यह सुनकर देवों ने सोचा, चल करके करें परीक्षा हम ।
आ करके राजभवन में फिर, माया से रुदन मचाया था।
मायानिर्मित मंत्रीगण को लक्ष्मण, के ढिग भिजवाया था।।
हे नाथ! राम की मृत्यु हुई, यह सुना लखन के कानों ने ।
यह देख हुए आश्चर्यचकित, सुरपुर को अंतध्र्यान हुए ।
अब प्राण नहीं लौटा सकते, चल दिये दिलों में ग्लानि लिए।।
जो मायावी था रुदन वही, अब बना रुदन सचमुच का था।
सत्तरह हजार रानियों का वह, रुदन देख भू काँप उठी।
संबंधी सेवकगण जितने, सबके मुख से इक आह उठी।।
हो गया दंग हर पुरवासी, जिस—जिसने भी ये खबर सुनी।