"बुधग्रहारिष्टनिवारक श्री मल्लिनाथ चालीसा" के अवतरणों में अंतर
(→बुधग्रहारिष्टनिवारक श्री मल्लिनाथ चालीसा) |
(→बुधग्रहारिष्टनिवारक श्री मल्लिनाथ चालीसा) |
||
पंक्ति १: | पंक्ति १: | ||
==<center><font color=blue>'''बुधग्रहारिष्टनिवारक श्री मल्लिनाथ चालीसा'''</font></center>== | ==<center><font color=blue>'''बुधग्रहारिष्टनिवारक श्री मल्लिनाथ चालीसा'''</font></center>== | ||
+ | <div class="side-border15"> | ||
<poem><center> | <poem><center> | ||
-दोहा- | -दोहा- | ||
− | वन्दूं श्री जिन मल्लिप्रभु , वीतराग सुखकार | | + | वन्दूं श्री [[जिन]] [[मल्लिप्रभु]] , [[वीतराग]] सुखकार | |
− | काममल्ल को जीतकर , पद पाया अविकार ||१|| | + | [[काममल्ल]] को जीतकर , पद पाया अविकार ||१|| |
− | उन्निसवें तीर्थेश के, पद वंदन शत बार | | + | उन्निसवें [[तीर्थेश]] के, पद वंदन शत बार | |
− | चालीसा पढकर लहूँ , स्वात्मधाम सुखकार ||२|| | + | चालीसा पढकर लहूँ , [[स्वात्मधाम]] सुखकार ||२|| |
-चौपाई- | -चौपाई- | ||
− | मल्लिप्रभु यम मल्ल विजेता , मोक्षमार्ग के बन गए नेता ||१|| | + | [[मल्लिप्रभु]] यम मल्ल विजेता , [[मोक्षमार्ग]] के बन गए नेता ||१|| |
− | आत्मा में जब रमण | + | [[आत्मा]] में जब रमण कर लिया , [[शिवलक्ष्मी]] का वरण कर लिया ||२|| |
− | चैत्र सुदी एकम शुभ तिथि में ,गर्भकल्याणक सुरगण करते ||३|| | + | चैत्र सुदी एकम शुभ तिथि में ,[[गर्भकल्याणक]] सुरगण करते ||३|| |
− | + | मगशिर सुदि ग्यारस में प्रभु का,जन्म हुआ तब [[त्रिभुवन]] हरषा ||४|| | |
− | इन्द्र शची संग हर्ष मनाता, मेरु शिखर अभिषेक रचाता ||५|| | + | इन्द्र शची संग हर्ष मनाता, [[मेरु]] शिखर [[अभिषेक]] रचाता ||५|| |
देव-देवियाँ प्रभु गुण गाते , प्रभुवर जन-जन के मन भाते ||६|| | देव-देवियाँ प्रभु गुण गाते , प्रभुवर जन-जन के मन भाते ||६|| | ||
− | मिथिला नगरी धन्य हो गई , कुम्भराज पितु मात प्रजावति ||७|| | + | [[मिथिला]] नगरी धन्य हो गई , कुम्भराज पितु मात प्रजावति ||७|| |
बालपने से यौवन आया, फिर भी ब्याह नहीं रचवाया ||८|| | बालपने से यौवन आया, फिर भी ब्याह नहीं रचवाया ||८|| | ||
− | जातिस्मरण हुआ जब प्रभु को, दीक्षा हेतु चले तब वन को ||९|| | + | [[जातिस्मरण]] हुआ जब [[प्रभु]] को, [[दीक्षा]] हेतु चले तब वन को ||९|| |
देव जयंता पालकि लाए , जय जय करते स्तुति गाएं ||१०|| | देव जयंता पालकि लाए , जय जय करते स्तुति गाएं ||१०|| | ||
− | स्वयं प्रभू ने दीक्षा ली थी , मगशिर शुक्ला | + | स्वयं प्रभू ने [[दीक्षा]] ली थी , मगशिर शुक्ला एकम् तिथि थी ||११|| |
− | बाल ब्रम्हचारी पद पाया , आत्मज्ञान में मन को रमाया ||१२|| | + | [[बाल ब्रम्हचारी]] पद पाया , [[आत्मज्ञान]] में मन को रमाया ||१२|| |
− | घोर तपश्चर्या थे करते , केवलज्ञान प्रगट हुआ उनके ||१३|| | + | घोर [[तपश्चर्या]] थे करते , [[केवलज्ञान]] प्रगट हुआ उनके ||१३|| |
− | चार घातिया कर्म विनाशे , लोकालोक सभी परकाशे ||१४|| | + | चार [[घातिया]] [[कर्म]] विनाशे , लोकालोक सभी परकाशे ||१४|| |
− | समवसरण की दिव्य सभा थी, ऊंकारमय ध्वनी खिरी थी ||१५|| | + | [[समवसरण]] की [[दिव्य सभा]] थी, ऊंकारमय ध्वनी खिरी थी ||१५|| |
− | जिन भव्यों ने पान किया था , आत्मा का उत्थान किया था ||१६|| | + | जिन भव्यों ने पान किया था , [[आत्मा]] का उत्थान किया था ||१६|| |
− | बीस हजार हाथ ऊपर था , समवसरण वह बना अधर था ||१७|| | + | बीस हजार हाथ ऊपर था , [[समवसरण]] वह बना अधर था ||१७|| |
उसमें ही प्रभु अधर विराजे , भव्यों को हितमार्ग बताते ||१८|| | उसमें ही प्रभु अधर विराजे , भव्यों को हितमार्ग बताते ||१८|| | ||
− | आयु रही जब एक मास तब , पहुंचे गिरि सम्मेदशिखर पर ||१९|| | + | आयु रही जब एक मास तब , पहुंचे गिरि [[सम्मेदशिखर]] पर ||१९|| |
− | योग निरोधा कर्म नशाया, तत्क्षण सिद्धशिला को पाया ||२०|| | + | योग निरोधा कर्म नशाया, तत्क्षण [[सिद्धशिला]] को पाया ||२०|| |
− | वीतराग सर्वज्ञ कहाए , इन्द्र मोक्षकल्याण मनाएं ||२१|| | + | [[वीतराग]] [[सर्वज्ञ]] कहाए , इन्द्र [[मोक्षकल्याण]] मनाएं ||२१|| |
चिन्ह कलश से सब जन जानें , स्वर्ण वर्णयुत आभा मानें ||२२|| | चिन्ह कलश से सब जन जानें , स्वर्ण वर्णयुत आभा मानें ||२२|| | ||
जय जय जय जिनदेव हमारे , स्वामी हमको भव से तारें ||२३|| | जय जय जय जिनदेव हमारे , स्वामी हमको भव से तारें ||२३|| | ||
पंक्ति ३८: | पंक्ति ३९: | ||
जो भवि तुमको शीश नवावें,शिरोरोग आदिक नाश जावें ||३०|| | जो भवि तुमको शीश नवावें,शिरोरोग आदिक नाश जावें ||३०|| | ||
निरखें,वाणि सुनें,स्तुति से,नेत्र कर्ण मुख रोग विनशते ||३१|| | निरखें,वाणि सुनें,स्तुति से,नेत्र कर्ण मुख रोग विनशते ||३१|| | ||
− | ध्यान करे जो नित्य तुम्हारा , हृदय | + | ध्यान करे जो नित्य तुम्हारा , हृदय उदर व्याधी को टारा||३२|| |
− | करते जो पंचांग प्रणाम , नीरोगी अरु हों निष्काम ||३३|| | + | करते जो पंचांग प्रणाम , नीरोगी अरु हों [[निष्काम]] ||३३|| |
व्यथा मानसिक सब ही नशती ,आर्थिक संकट से भी मुक्ती ||३४|| | व्यथा मानसिक सब ही नशती ,आर्थिक संकट से भी मुक्ती ||३४|| | ||
तव भक्ती सब कार्य करेगी , कौन सी वस्तु जिसे नहिं देगी ||३५|| | तव भक्ती सब कार्य करेगी , कौन सी वस्तु जिसे नहिं देगी ||३५|| | ||
− | व्यथा मेट दो अर्ज किया है , मल्लिप्रभू तुम्हें नमन किया है ||३६|| | + | व्यथा मेट दो अर्ज किया है , [[मल्लिप्रभू]] तुम्हें नमन किया है ||३६|| |
हे बुध ग्रह के कष्टनिवारक , तुम ही तरण और हो तारक ||३७|| | हे बुध ग्रह के कष्टनिवारक , तुम ही तरण और हो तारक ||३७|| | ||
− | इस ग्रह की सब पीड़ा हर लो , पूर्ण सुखी मुझको तुम | + | इस ग्रह की सब पीड़ा हर लो , पूर्ण सुखी मुझको तुम कर दो ||३८|| |
− | स्वामी तुम बिन कौन खिवैया , बीच भंवर में फंसी है नैया ||३९|| | + | स्वामी तुम बिन कौन [[खिवैया]] , बीच भंवर में फंसी है नैया ||३९|| |
एक यही अरदास हमारी , जीवन में भर दो उजियारी ||४०|| | एक यही अरदास हमारी , जीवन में भर दो उजियारी ||४०|| | ||
-शंभु छंद – | -शंभु छंद – | ||
− | प्रभु मल्लिनाथ का चालीसा , जो चालीस दिन तक पढते हैं | | + | प्रभु [[मल्लिनाथ]] का चालीसा , जो चालीस दिन तक पढते हैं | |
− | विधिवत जाप्यानुष्ठान करें , | + | विधिवत [[जाप्यानुष्ठान]] करें ,[[बुधग्रह]] की बाधा हरते हैं || |
− | लौकिक वैभव के साथ ‘इंदु’ आध्यात्मिक वैभव मिल जाता | | + | लौकिक वैभव के साथ ‘इंदु’ [[आध्यात्मिक]] वैभव मिल जाता | |
अंतर में ज्ञान उदित होता, संसार जलधि से तिर जाता ||१|| | अंतर में ज्ञान उदित होता, संसार जलधि से तिर जाता ||१|| | ||
१३:२१, २२ जनवरी २०२० का अवतरण
बुधग्रहारिष्टनिवारक श्री मल्लिनाथ चालीसा
-दोहा-
वन्दूं श्री जिन मल्लिप्रभु , वीतराग सुखकार |
काममल्ल को जीतकर , पद पाया अविकार ||१||
उन्निसवें तीर्थेश के, पद वंदन शत बार |
चालीसा पढकर लहूँ , स्वात्मधाम सुखकार ||२||
-चौपाई-
मल्लिप्रभु यम मल्ल विजेता , मोक्षमार्ग के बन गए नेता ||१||
आत्मा में जब रमण कर लिया , शिवलक्ष्मी का वरण कर लिया ||२||
चैत्र सुदी एकम शुभ तिथि में ,गर्भकल्याणक सुरगण करते ||३||
मगशिर सुदि ग्यारस में प्रभु का,जन्म हुआ तब त्रिभुवन हरषा ||४||
इन्द्र शची संग हर्ष मनाता, मेरु शिखर अभिषेक रचाता ||५||
देव-देवियाँ प्रभु गुण गाते , प्रभुवर जन-जन के मन भाते ||६||
मिथिला नगरी धन्य हो गई , कुम्भराज पितु मात प्रजावति ||७||
बालपने से यौवन आया, फिर भी ब्याह नहीं रचवाया ||८||
जातिस्मरण हुआ जब प्रभु को, दीक्षा हेतु चले तब वन को ||९||
देव जयंता पालकि लाए , जय जय करते स्तुति गाएं ||१०||
स्वयं प्रभू ने दीक्षा ली थी , मगशिर शुक्ला एकम् तिथि थी ||११||
बाल ब्रम्हचारी पद पाया , आत्मज्ञान में मन को रमाया ||१२||
घोर तपश्चर्या थे करते , केवलज्ञान प्रगट हुआ उनके ||१३||
चार घातिया कर्म विनाशे , लोकालोक सभी परकाशे ||१४||
समवसरण की दिव्य सभा थी, ऊंकारमय ध्वनी खिरी थी ||१५||
जिन भव्यों ने पान किया था , आत्मा का उत्थान किया था ||१६||
बीस हजार हाथ ऊपर था , समवसरण वह बना अधर था ||१७||
उसमें ही प्रभु अधर विराजे , भव्यों को हितमार्ग बताते ||१८||
आयु रही जब एक मास तब , पहुंचे गिरि सम्मेदशिखर पर ||१९||
योग निरोधा कर्म नशाया, तत्क्षण सिद्धशिला को पाया ||२०||
वीतराग सर्वज्ञ कहाए , इन्द्र मोक्षकल्याण मनाएं ||२१||
चिन्ह कलश से सब जन जानें , स्वर्ण वर्णयुत आभा मानें ||२२||
जय जय जय जिनदेव हमारे , स्वामी हमको भव से तारें ||२३||
अब मेरे भी कष्ट निवारो , मुझको भी भवदधि से तारो |||२४||
सुना बहुत लाखों को तारा , कितनों को भव पार उतारा||२५||
इसी हेतु तव शरणा आया , दुखों से मन बहु अकुलाया ||२६||
शारीरिक, मानस, आगंतुक और आर्थिक कष्ट बहुत हैं ||२७||
विह्वल है संसारी प्राणी, सुख खोजे बनता अज्ञानी ||२८||
किन्तु भक्ति जो तेरी करता , इन सब दुखों को है हरता||२९||
जो भवि तुमको शीश नवावें,शिरोरोग आदिक नाश जावें ||३०||
निरखें,वाणि सुनें,स्तुति से,नेत्र कर्ण मुख रोग विनशते ||३१||
ध्यान करे जो नित्य तुम्हारा , हृदय उदर व्याधी को टारा||३२||
करते जो पंचांग प्रणाम , नीरोगी अरु हों निष्काम ||३३||
व्यथा मानसिक सब ही नशती ,आर्थिक संकट से भी मुक्ती ||३४||
तव भक्ती सब कार्य करेगी , कौन सी वस्तु जिसे नहिं देगी ||३५||
व्यथा मेट दो अर्ज किया है , मल्लिप्रभू तुम्हें नमन किया है ||३६||
हे बुध ग्रह के कष्टनिवारक , तुम ही तरण और हो तारक ||३७||
इस ग्रह की सब पीड़ा हर लो , पूर्ण सुखी मुझको तुम कर दो ||३८||
स्वामी तुम बिन कौन खिवैया , बीच भंवर में फंसी है नैया ||३९||
एक यही अरदास हमारी , जीवन में भर दो उजियारी ||४०||
-शंभु छंद –
प्रभु मल्लिनाथ का चालीसा , जो चालीस दिन तक पढते हैं |
विधिवत जाप्यानुष्ठान करें ,बुधग्रह की बाधा हरते हैं ||
लौकिक वैभव के साथ ‘इंदु’ आध्यात्मिक वैभव मिल जाता |
अंतर में ज्ञान उदित होता, संसार जलधि से तिर जाता ||१||
नवग्रह सम्बंधित अन्य चालीसा पढें
अन्य सभी चालीसा पढ़ें