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+ | चालीसा के पाठ से,[[जिनवर]] का गुणगान ||२|| | ||
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+ | जय जय जय श्री नेमि [[जिनेश्वर]], कहलाए प्रभु तुम परमेश्वर ||१|| | ||
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+ | [[धनकुबेर]] करता है [[वृष्टी]], पन्द्रह महिने तक नित होती ||३|| | ||
+ | श्रावण शुक्ला छठ तिथि पावन,धन्य शिवादेवी का आँगन ||४|| | ||
+ | राजा समुद्रविजय हरषाए , [[शौरीपुर]] में खुशियाँ छाएं ||५|| | ||
+ | तीन लोक में आनंद छाया, [[स्वर्ग]] से [[इन्द्र]] सपरिकर आया ||६|| | ||
+ | [[मेरु]] [[सुदर्शन]] पर ले जाकर, कलशे खूब ढुराए प्रभु पर ||७|| | ||
+ | नीलकमल सम सुन्दर काया, बालपने से यौवन आया ||८|| | ||
+ | राजुल के संग ब्याह करन को, चले प्रभू जब जूनागढ़ को ||९|| | ||
+ | पशुओं की चीत्कार सुनी जब, तत्क्षण हुए [[विरागी]] [[जिनवर]] ||१०|| | ||
+ | श्रावण सुदि छठ की शुभ तिथि में, सहस्राम्र वन में प्रभु पहुचे||११|| | ||
+ | नमः सिद्ध कह [[दीक्षा]] ले ली, [[आत्मरमण]] की शिक्षा दे दी ||१२|| | ||
+ | [[बाल ब्रम्हचारी]] वे [[जिनवर]], [[वीतराग]] [[सर्वज्ञ]] [[हितंकर]] ||१३|| | ||
+ | आश्विन सुदि एकम की तिथि में, [[ऊर्जयंतगिरि]] पर जा तिष्ठे ||१४|| | ||
+ | प्रभु को [[केवलज्ञान]] हो गया, [[आत्मा]] का उत्थान हो गया ||१५|| | ||
+ | [[धनद]] ने [[समवशरण]] रचवाया, [[दिव्यध्वनि]] सुन् जग हरषाया ||१६|| | ||
+ | राजुल ने जब सुनी ये घटना, फ़ेंक दिया श्रृंगार फिर पुनः ||१७|| | ||
+ | बहुत दुखी हो रोती जाती, [[ऊर्जयंतगिरि]] चढ़ती जाती ||१८|| | ||
+ | [[उपदेशामृत]] पान कर लिया, [[संयम]] का शुभ मार्ग लख लिया ||१९|| | ||
+ | [[दीक्षा]] ले [[गणिनी]] कहलाईं, सच्ची प्रभु से प्रीति लगाई ||२०|| | ||
+ | [[समवशरण]] में [[कमलासन]] पर, [[चतुरंगुल]] भी रहें प्रभु अधर ||२१|| | ||
+ | चारों दिश में मुख है दिखता, तभी जगत है [[ब्रम्हा]] कहता ||२२|| | ||
+ | [[समवशरण]] का [[वैभव]] न्यारा, [[ग्रंथों]] में है वर्णन सारा ||२३|| | ||
+ | [[ऊर्जयंतगिरि]] [[पर्वत]] से ही, [[मोक्ष]] पधारे [[त्रिभुवनपति]] जी ||२४|| | ||
+ | [[लोकशिखर]] पर आन विराजे, [[नेमिनाथ]] [[जिनराज]] हमारे ||२५|| | ||
+ | वे तो [[वीतराग]] जिनदेवा, किन्तु करे जो भक्ती सेवा ||२६|| | ||
+ | उनके मनवांछित फल जाते, रोग,शोक,भय,व्याधि भगाते ||२७|| | ||
+ | [[आतमज्ञान]] उन्हें मिल जाता,भवि निज पर कल्याण कराता ||२८|| | ||
+ | [[राहूग्रह]] के स्वामी तुम हो, मेरे सभी अमंगल हर लो ||२९|| | ||
+ | [[ग्रह]] का चक्र [[अनादिकाल]] से, प्राणी को भटकाता जग में ||३०|| | ||
+ | [[जन्मकुंडली]] में यदि यह [[ग्रह]], अशुभ जगह पर हो जाते हैं ||३१|| | ||
+ | प्राणी को पीड़ा देते हैं, जीव दुखी तब ही होते हैं ||३२|| | ||
+ | अगर उच्च स्थान पे होते, सुख,समृद्धि सभी दे देते ||३३|| | ||
+ | स्वस्थ शरीर मिले धन सम्पति,और साथ में यशकीर्ती भी ||३४|| | ||
+ | [[राहू ग्रह]] की बढ़े असाता, तन में है बहु रोग सताता ||३५|| | ||
+ | धर्म में रुचि नहिं बढ़ पाती है,मन में शांति न हो पाती है ||३६|| | ||
+ | [[नेमीप्रभु]] की जपते माला, वे पाएंगे सौख्य निराला ||३७|| | ||
+ | प्रभु भक्ती से पाप कटेंगे,ग्रह भी उच्च और शुभ होंगे ||३८|| | ||
+ | सांसारिक दुःख से घबराया, अतः आपकी शरण में आया ||३९|| | ||
+ | परम क्रपालु दया अब कर दो,[[ राहू ग्रह]] की बाधा हर लो||४०|| | ||
+ | -शम्भू छंद – | ||
+ | श्री [[नेमिनाथ]] का चालीसा, जो चालीस दिन तक पढ़ते हैं | | ||
+ | फिर साथ-साथ विधि के संग में,उन नाम की माला जपते हैं || | ||
+ | विघ्नों का शीघ्र शमन होकर, सब व्याधि व्यथाएँ नश जातीं | | ||
+ | सुख सम्पति संतति बढ़े सदा,[[आत्मा]] में परम शांति आती ||१|| | ||
+ | -दोहा- | ||
+ | चालीसा विधिवत पढ़े , चालिस चालिस बार | | ||
+ | [[राहू ग्रह]] के कष्ट से,वो हो जाता पार ||१|| | ||
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+ | [[चित्र:Graphics-christmas-candles-814650.gif|center|100px]] | ||
+ | </center></poem> | ||
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२३:२१, २४ जनवरी २०२० के समय का अवतरण
राहुग्रहारिष्टनिवारक श्री नेमिनाथ चालीसा
-दोहा-
नेमिनाथ भगवान को, वंदन बारम्बार |
उनके वचनामृत सभी, भविजन को सुखकार ||१||
स्वात्मनिधी को प्राप्त कर,किया आत्मकल्याण |
चालीसा के पाठ से,जिनवर का गुणगान ||२||
-चौपाई –
जय जय जय श्री नेमि जिनेश्वर, कहलाए प्रभु तुम परमेश्वर ||१||
गर्भ में माता के जब आए, सोलह स्वप्न उन्हें दिखलाए ||२||
धनकुबेर करता है वृष्टी, पन्द्रह महिने तक नित होती ||३||
श्रावण शुक्ला छठ तिथि पावन,धन्य शिवादेवी का आँगन ||४||
राजा समुद्रविजय हरषाए , शौरीपुर में खुशियाँ छाएं ||५||
तीन लोक में आनंद छाया, स्वर्ग से इन्द्र सपरिकर आया ||६||
मेरु सुदर्शन पर ले जाकर, कलशे खूब ढुराए प्रभु पर ||७||
नीलकमल सम सुन्दर काया, बालपने से यौवन आया ||८||
राजुल के संग ब्याह करन को, चले प्रभू जब जूनागढ़ को ||९||
पशुओं की चीत्कार सुनी जब, तत्क्षण हुए विरागी जिनवर ||१०||
श्रावण सुदि छठ की शुभ तिथि में, सहस्राम्र वन में प्रभु पहुचे||११||
नमः सिद्ध कह दीक्षा ले ली, आत्मरमण की शिक्षा दे दी ||१२||
बाल ब्रम्हचारी वे जिनवर, वीतराग सर्वज्ञ हितंकर ||१३||
आश्विन सुदि एकम की तिथि में, ऊर्जयंतगिरि पर जा तिष्ठे ||१४||
प्रभु को केवलज्ञान हो गया, आत्मा का उत्थान हो गया ||१५||
धनद ने समवशरण रचवाया, दिव्यध्वनि सुन् जग हरषाया ||१६||
राजुल ने जब सुनी ये घटना, फ़ेंक दिया श्रृंगार फिर पुनः ||१७||
बहुत दुखी हो रोती जाती, ऊर्जयंतगिरि चढ़ती जाती ||१८||
उपदेशामृत पान कर लिया, संयम का शुभ मार्ग लख लिया ||१९||
दीक्षा ले गणिनी कहलाईं, सच्ची प्रभु से प्रीति लगाई ||२०||
समवशरण में कमलासन पर, चतुरंगुल भी रहें प्रभु अधर ||२१||
चारों दिश में मुख है दिखता, तभी जगत है ब्रम्हा कहता ||२२||
समवशरण का वैभव न्यारा, ग्रंथों में है वर्णन सारा ||२३||
ऊर्जयंतगिरि पर्वत से ही, मोक्ष पधारे त्रिभुवनपति जी ||२४||
लोकशिखर पर आन विराजे, नेमिनाथ जिनराज हमारे ||२५||
वे तो वीतराग जिनदेवा, किन्तु करे जो भक्ती सेवा ||२६||
उनके मनवांछित फल जाते, रोग,शोक,भय,व्याधि भगाते ||२७||
आतमज्ञान उन्हें मिल जाता,भवि निज पर कल्याण कराता ||२८||
राहूग्रह के स्वामी तुम हो, मेरे सभी अमंगल हर लो ||२९||
ग्रह का चक्र अनादिकाल से, प्राणी को भटकाता जग में ||३०||
जन्मकुंडली में यदि यह ग्रह, अशुभ जगह पर हो जाते हैं ||३१||
प्राणी को पीड़ा देते हैं, जीव दुखी तब ही होते हैं ||३२||
अगर उच्च स्थान पे होते, सुख,समृद्धि सभी दे देते ||३३||
स्वस्थ शरीर मिले धन सम्पति,और साथ में यशकीर्ती भी ||३४||
राहू ग्रह की बढ़े असाता, तन में है बहु रोग सताता ||३५||
धर्म में रुचि नहिं बढ़ पाती है,मन में शांति न हो पाती है ||३६||
नेमीप्रभु की जपते माला, वे पाएंगे सौख्य निराला ||३७||
प्रभु भक्ती से पाप कटेंगे,ग्रह भी उच्च और शुभ होंगे ||३८||
सांसारिक दुःख से घबराया, अतः आपकी शरण में आया ||३९||
परम क्रपालु दया अब कर दो,राहू ग्रह की बाधा हर लो||४०||
-शम्भू छंद –
श्री नेमिनाथ का चालीसा, जो चालीस दिन तक पढ़ते हैं |
फिर साथ-साथ विधि के संग में,उन नाम की माला जपते हैं ||
विघ्नों का शीघ्र शमन होकर, सब व्याधि व्यथाएँ नश जातीं |
सुख सम्पति संतति बढ़े सदा,आत्मा में परम शांति आती ||१||
-दोहा-
चालीसा विधिवत पढ़े , चालिस चालिस बार |
राहू ग्रह के कष्ट से,वो हो जाता पार ||१||